कैलाश मानसरोवर यात्रा.
आदि कैलाश में भी ताल है जिसमें श्रद्धालु स्नान कर सकते हैं। यह हमारी सरहद में हैं और इस यहां लाखों यात्री जा सकते हैं। वहां कई दर्शनी स्थल भी हैं। अप्रैल महीने से शुरू होने वाली कैलाश मानसरोवर यात्रा इस साल होना भी मुश्किल नजर आ रहा है।
यह हवाई यात्रा है, जिसमें हेलीकॉप्टर के जरिए नेपाल के नेपालगंज से सिमिकोट और हिलसा होकर तकलाकोट तक जाते हैं. उसके आगे की यात्रा मोटर से होती है. विदेश मंत्रालय हर साल कैलास मानसरोवर यात्रा का आयोजन करता है. सरकार 60 यात्रियों का समूह 16 बैचों में 29 मई से 26 सितंबर के बीच भेजती है.
यह यात्रा 8 जून से शुरू होगी और 8 सितंबर तक चलेगी। बता दें कि उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे से होकर जाने वाले मार्ग से प्रति व्यक्ति यात्रा का खर्च 1.8 लाख रुपये आता है। इसके लिए 60-60 श्रद्धालुओं के कुल 18 जत्थे बनाए जाएंगे।
कैलाश पर्वत तक जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक रास्ता भारत में उत्तराखंड से होकर गुज़रता है लेकिन ये रास्ता बहुत मुश्किल है क्योंकि यहां ज़्यादातर पैदल चलकर ही यात्रा पूरी हो पाती है। दूसरा रास्ता जो थोड़ा आसान है वो है नेपाल की राजधानी काठमांडू से होकर कैलाश जाने का रास्ता।
वाया दारमा होकर जाने पर भी यात्री चौथे दिन गुंजी पहुंच जाएंगे। व्यास घाटी से होने वाली यात्रा में यात्रियों का पहला पड़ाव सिर्खा, दूसरा गाला, तीसरा बूंदी और चौथा पड़ाव गुंजी होता है। पांचवा अंतिम पड़ाव नावीढांग होता है।
मानसरोवर वह पवित्र जगह है, जिसे शिव का धाम माना जाता है। हिंदु मान्यता के अनुसार, मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिव साक्षात विराजते हैं। यह हिन्दुओं के लिए बड़ा तीर्थ स्थल है। संस्कृत शब्द मानसरोवर, मानस तथा सरोवर को मिल कर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- मन का सरोवर।
कैलाश पर्वत पर व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है
ऐसा भी माना जाता है कि कैलाश पर्वत पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है. बिना दिशा के चढ़ाई करना मतलब मौत को दावत देना है, इसलिए कोई भी इंसान आज तक कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया है.
हर हर महादेव
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